आख़िर भारत के किसानों के दर्द को कौन समझेगा ???

डॉ रणधीर कुमार

विगत कई दिनो से हज़ारो की संख्या में हमारे देश की रीढ की हड्डी किसान वर्ग अपने अधिकारों के लिए कपकपाती ठंड की ठुठरन को झेल रहे हैं तो वहीं बारिश में अपने टैक्टर या ट्रको में पूरी रात सिर्फ़ और सिर्फ अपने बेह्तर अधिकार एवं आने वाली पीढी के बेहतरीन हेतु गुजार रहे हैं ! महीने भर से भी ऊपर हो गए है इस ओर कोई ठोस निर्णय नहीं आ पाना सरकार पर एक बड़ी प्रश्न खड़ा करती है!इस महत्वपूर्ण बिंदु पर संवेदनशीलता से विचार विमर्श की जरूरत है ! कई लोग इस आंदोलन को राजनीतिक रुप से देख रहे हैं, कई लोग कुछ और परंतु वह उनके मत व विचार है ! मेरे नजर में यह एक बड़ी आंदोलन है जो वर्षों से चली आ रही परंपरा को बचाने की लड़ाई व आंदोलन है !

मैं एक किसान परिवार से आता हूँ मैंने हर वह कार्य बचपन में किया व सीखा है जो किसानो की सच्चाई एवं उनकी जीवंतता को दिखाता है !आज भी मिट्टी से जुड़ा रहना व उसके बेहद करीब रहने का सौभाग्य हमेशा खुद को देता हूँ और हमेशा जुड़ा रहूँगा !

किसान आंदोलन की सबसे बड़ी माँग है मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा पारित किसान बिल का वापस करना जिस हेतु आज देश भर के विभिन्न प्रांतों के हज़ारों की तादाद में किसान दिल्ली- हरियाणा- ग़ाज़ियाबाद बॉर्डर पर जमे पड़े है !
सवाल यह है कि क्या हज़ारों किसान बेवकूफ हैं जो इस भरी सर्दी और बरसात में खुद को प्रताड़ित कर रहे हैं? बात समझिए हम सभी जानते हैं कि भारत के कृषि प्रधान देश है और यह एक बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसपर मौजूदा सरकार की नजर अब चली गई है और इसे भी निजीकरण के आड़ में धकेलना चाह रही है इसके पीछे एक बडी साजिश नजर आ रही है ! सरकार कहती है कि इससे किसानों में मजबूती आएगी इसकी स्थिति में सुधार होगी पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि सरकार जो कार्य ख़ुद नहीं कर या रही जिसके पास ब्यूरोक्रेसी , नीतिनिर्माताओं की फौज ,सलाहकार एवं एक से एक विद्वान नेता है तो फिर इसका हल खुद से करने की जरुरत थी ना की उसे किसी निजीकरण के हाथो में सौप कर !
मौजूदा सरकार की एक एजेंडा को समझिये सारी बातें पानी की तरह साफ हो जायेगी BSNL सरकार की अपनी नेटवर्क कंपनी है उसे मजबूत करना छोड़ JIO को बढ़ाया गया आखिर क्यों JIO ने तगड़ी मार्केटिंग की सबको फ्री की आदत लगवा ली और आज अरबों वसूल रही है आखिर क्यों ? रेलवे आमजनता सरकार की संपत्ति है उसे निजीकरण क्यों ताकि जो गरीब गुरबे ट्रेन में सफर करते थे उसे खत्म कर दें ,निजीकरण के वजाय सरकार को ट्रेन व्यवस्था एवं भारतीय रेलवे को मजबूत करनी चाहिए थी परन्तु वो न कर निजीकरण को अपनाया और अपनी वर्षो की संपत्ति दूसरे को सौप दी आखिर क्यों ? इसी तरह किसानों को गिरवी रखने की तैयारी सरकार ने सुरु कर दी है जिसे समझने की जरूरत है !
देखिए सरकार के पास सब कुछ होती है वह चाहे तो पूरी देश को बेहतरीन तरीके से चला सकती है और सभी समस्याओं का समाधन कर सकती है ! चाहे वह किसानों का दर्द हो या बेरोजगारी की भीख या फ़िर बिलखते बच्चों के लिए खुशी ! परन्तु सवाल उठती है आपका सरकार व नेतृत्व कैसा है ??
जाति धर्म समाज से बड़ी चीज होती है मानवता जो लोग नही समझते और हम सब एक असंवेदनशील दुनिया मे प्रवेश करते जा रहे हैं ! वैसे सरकार जिसको सिर्फ सत्ता से मतलब हो ,जिसको चुनाव में लाखों की भीड चाहिए सत्ता किसी भी शर्त में चाहिए, पुरानी सरकार की गलतियों का आलोचना करना यह भी एक बेहतर सता का नेतृत्व नहीं हो अपने कार्यकाल में जनता को खुशी से जन नीति निर्धारण करे और बेहतर करे उसे बेहतर नेतृत्व कहते है ! जो सरकार जनता को त्रस्त कर उसे अपने अधीन करने की कोशिश करे उसके मौलिक अधिकार को खत्म करने की कोशिश करे वह निरंकुशत सत्ता को जनता के द्वारा खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए !
बरहाल जो भी हो पर भारत की रीढ़ की हड्डी भारत की कृषि व्यवस्था ,किसानों के अस्तित्व को बचाने के लिए आज संघर्ष करने की जरूरत है जिससे आने वाली हमारी पीढ़ी और भारत की जनता कृषि प्रधान देश मे खुशहाली आये!
(यह लेखक के निजी विचार हैं )
लेखक युवा सामाजिक कार्यकर्ता एवं मानवाधिकार संगठन एन एच आर सी सी बी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं! IIM राँची एवं केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं !

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