बेरोजगारी का दंश में सिसकता भारत ……..युवा का दर्द !

डॉ रणधीर कुमार 

भारत विश्व की सबसे युवा प्रधान देश है और इस देश की युवा बेरोजगारी का बड़ा दंश झेल रही है ! पिछले 70 सालो में इस देश मे बेरोजगारी का बढ़ते जनसंख्या हेतु कोई ठोस पहल ना किया जाना भारत को कहीं ना कहीं एक बड़े प्रश्न की और खड़ा करती है , सिर्फ जनसंख्या का बढ़ना बेरोजगारी जैसे बड़े समस्या का कारण नहीं हो सकता इसमें सबसे बडी कारण भारत की शिक्षा प्रारूप, सरकार की पॉलिसी एवं उनका बेरोजगारी के खात्मे के प्रति समर्पण की ओर इंगित करती है!

मैं अपनी लेखनी से सरकार से सीधा सवाल करना चाहता हूँ कि क्या आपकी सरकार ने विचारों के विशाल चट्टान पर बैठ कर कभी यह सोचने की कोशिश की है कि जिन युवाओं को दफ्तरों, कारखानों और खेतों व अन्य जगहों में नौकरी व अपने हाथो में खड़ा होनी चाहिए वे सड़को की धूल में , ताश के पत्तों में, बीड़ी और सिगरेट के धुंआ में ,शराब की बोतलों में ,खैनी के पिक में अपना भविष्य क्यो बर्बाद कर रहे हैं! जिन युवा के आँखों मे अपने परिवार, समाज और देश सेवा की धारा बहनी चाहिए उस युवाओं के आँखों मे टूटा घर, बंद कारखाने ,उजड़े खेत, रोजगार दफ्तर की बिखरी फाइलों का चित्र क्यों तिलमिला रहा है ??

अगर युवा देश के भविष्य हैं ,राष्ट्र के कर्णधार हैं तो यह भविष्य जेल के चहारदीवारी में क्यों कैद है ?? इसके हाथो में हथकड़ियां ,पैरों में बेड़िया क्यो है? पागल खाने में क्यों है ?जिनके हाथों में किताब ,पेंसिल और काम के औजार होनी चाहिए उनके हाथो में बंधूक , चाकू, चरस ,अफीम ,गांजा क्यो है???क्यो इन्हे मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति ,कलेक्टर कार्यालय के सामने आत्मदाह करने व अपने ही घरों में अपना शिकार क्यो करना पड़ता है ??

सरकारी आंकड़े बताते है कि देश मे औसतन लगभग 8 करोड से अधिक लोग प्रति वर्ष सरकारी रोजगार कार्यालय में अपना नाम दर्ज करवाते हैं जिनमे से सालाना लगभग 1 लाख लोगों को ही नौकरियां मिल पाती है ! अब आप ही बताइये बाकी लोग कहाँ जायँगे?? लाखों करोड़ों नौजवान क्या करेंगे ???

बेरोजगारी का नज़ारा देखना है तो आप प्रतियोगिता परीक्षा फॉर्म भरने वाली दुकान , परीक्षा केन्द्र ,पोस्ट ऑफिस और परीक्षा की तैयारी कराने वाली संस्थाओं में जा कर देखिए जहाँ रोटी के एक टुकड़े पर दौड़ते भूखे कुत्तों के झुंड की तरह नौकरी की एक सीट के लिए हज़ारो बेरोजगार युवा दौड़ते दिखाई देते हैं ! एक चपरासी के पद के लिए पी एच डी, इंजीनियरिंग किये युवा भेड़िये की दौड़ लगाते रहते है ! केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़े कहती है कि 1992 में जहाँ देश में बेरोजगारी की संख्या 2.30 करोड थी वहीं 1997 में 5.20 करोड हो गई और सन 2002 तक लगभग 9.40 करोड हो गयी अभी आप खुद से अंदाजा लगा लीजिए कि बेरोजगारी की हाल क्या है ? इसका नतीजा यह है कि देश का वह पढा लिखा नौजवान जो अपनी ताकत से अपनी क्षमता से देश को बुलंदी पर पहुंचा सकता है , आज वह अभी अपनी बेरोजगारी छुपाने लिए तथा अपनी व परिवार के भरण पोषण के लिये जीप, टैक्सी ,ऑटो ,रिक्शा, टमटम, जुता चपल सील कर, कपड़े सील कर, टायर ट्यूब के दुकान पर,ट्रेन व स्टेशन पर चिनिया -बादाम पानी बेच कर, हौटलो में झाड़ू मार कर, पोछा मार कर, घर से दुर जा कर दूर शहर में चंद पैसों के लिए फैक्ट्री में अपनी ज़िंदगी बर्बाद करते हुए, सेठ साहूकारों के ताने सुनते हुए, कपड़े, चाय ,सब्जी की छोटी मोटी खोली खोल कर ,शादी- पार्टी में चंद पैसे के लिए पूरी रात बिना कपड़े रंग का लेप लगा कर खड़ा रह कर किसी तरह अपना समय काट रहा है !

भरस्टाचार ,घूसखोरी के कारण अयोग्य व्यक्ति का जब नौकरी करने लगते है और योग्य व्यक्ति सड़कों पर धूल फाकने लगते हैं! पैरवी और पैसे से नौकरी पाने वाले को समाज मे अलग नजर से देखने लगती है उसे प्यार व सम्मान देता है और बेरोजगारी को अपमान देता है ! ऐसा नहीं है कि सभी सफल लोग पिछले दरवाजे से ही नौकरी में जाते ही बल्कि ढेर सारे अपनी मेहनत व काबिलियत से नौकरी करते हैं! मगर हम समाज मे वयाप्त भरस्टाचार व अव्यवस्था पर बात कर रहे हैं जहाँ गलत तरीके जे नौकरी करने वाले भूल जाते है कि वह नौकरी किसी वह भी किसी का बेटा ,किसी की बेटी ,भाई व बहन है जिसे किसी के बुढ़ापे का सहारा बनना था ,जिसे बूढ़ी माँ के आँखों मे खुशी देखना था और मजबूत सहारा बनना था !

दुख तब उफान मार देती है जब वही भरस्टाचारी समाज बेरोजगार युवा से सवाल करती है कि – क्या बाबू क्या हो रहा है ?? अरे पढ़ाई लिखाई अभी चल ही रहा है क्या!???? अरे अब कितना पढ़ोगे??? अरे छोड़ो पढ़ाई लिखाई कुछ धंधा -पानी सुरु करो !! यकीन मानिए उस वक़्त आँखों से पानी के जगह खून के आँसू आ जाते हैं उस वक़्त अपने ही बाजुओं और कदमो पर शक होने लगता है कि क्या मुझमें इतनी ताकत नहीं कि माँ के लिये साड़ी ,पिता के लिए कुर्ता, बहन की चोली, बीबी के लिए बिंदिया , बच्चे के लिए खिलौने कागज़ कलम और पड़ोसी के दुख का साथी नही बन सकते ! मग़र हम चाह कर भी नहीं कर सकते क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं हैं !

एक छात्र के लिए एक10 फ़ीट का कमरा उसका पूरा दुनिया होता है उसी में एक गैस चूल्हा , किताब, सोने के बिछोने , सुलाने जगाने के लिये एक घड़ी होती है और इसी कमरे में ना जाने कितनी होली दीवाली दशहरा ईद मुहर्रम क्रिसमस सरहुल बैशाखी खुली और चिंतित आँखों मे खत्म हो जाती है ,ना जाने कितने कागज़ और कलम समाप्त हो जाती है ! घर से मिलते महीने के पैसे खत्म हो जाते है तो ट्यूशन पढ़ा कर इधर उधर हाथ पांव मार कर एक ही पेंट -शर्ट में पॉकेट में 100 -200 रख ,प्लेटफार्म में सोकर, देश के एक कोने से दूसरे कोने को नापते रहते है ! इसमें कुछ सफल होते है और हज़ारो वही फिर रास्ते मे धूल फाँकते रहते हैं! ऐसा नहीं कि बचे लोग के पास काबिलियत योग्यता नहीं है बस उनके लायक सरकार के पास ऐसा काम नहीं है इसीलिए बेरोजगारी का दंश झेलते रहते हैं और एक जिंदा लाश बन जाते है! समाज और घर के दबाद और अपनी जिम्मेदारी को ध्यान रखते शादी हो जाती है ! जिम्मेदारी बढ जाती है कुछ छोटे मोटे जीविकोपार्जन का कार्य करते हैं! कुछ युवा डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं जीवन से तंग आ कर दुनिया को अलविदा कह देते हैं इसी तरह देश का एक युवा बेटा भविष्य किसी का भाई व बहन सुपुर्द ए खाक हो जाते हैं!

जो बच जाते हैं उनमें से कुछ गलत रास्ते मे चल पड़ते है मानव तस्करी ,जिस्मफरोशी,अफीम, गंजा ,चरस की मार्केटिंग, भरस्टाचारी यो की दलाली करना ,कुछ हथियार उठा लेते हैं या फिर घर से हज़ारों सैकडो किलोमीटर दूर सेठ साहूकार की जी हुजूरी में अपनी ज़िंदगी को गवा देते है!

कुछ असफल युवा फिर से वही 10 फ़ीट के कमरे में किताबों की दुनिया मे जा कर किताबो से पूछते हैं की – बता हमने मेहनत करने में कहाँ कमी की ?? तुझे कितनी बार जेहन में उतारा है ,तू तो जानती है पर समाज क्यो मेरी मेहनत पर शक करता है ?? वो हमारी लेखनी जबाब दे ?? क्या इस असफलता में सारा दोष मेरा ही है?? अरे वो वर्षो से साथ रहने वाली घड़ी तू ही तो एक माँ की तरह हर रोज सुलाती है, जगाती है ,बता हमने कब समय पर नहीं पढ़ा ?? वह अपने 10 फ़ीट के हर चीज़ से सवाल करती है कि बता मेरी मेहनत में क्या कमी रही ?? लिहाजा उस 10 फ़ीट की कमरे में छोटी सी खिड़की से आती किरण फिर से उसे नई रोशनी के साथ मेहनत संघर्ष को प्रेरित करती है और फिर से वही जुनून के साथ एक बार और प्रयास करने को कहती है …इसी तरह ना जाने कितनी बार वह सुरज की रोशनी उसकी जिंदगी को को एक सीख देती है !

लेखक मानवाधिकार संस्था एन एच आर सी सी बी के राष्ट्रीय अध्य्क्ष हैं ! IIM Ranchi एवं केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



जवाब जरूर दे 

सरकार के नये यातायात नियमों से आप क्या है ? जवाब जरूर दे ,

View Results

Loading ... Loading ...


Related Articles

Close
Website Design By Bootalpha.com +91 82529 92275
.