झारखंड के रामगढ़ के भुरकुंडा और पतरातू रेलवे साइडिंग कोयले में चारकोल मिलाया जा रहा

झारखण्ड ब्यूरो/उमेश सिन्हा

रांची/रामगढ़। झारखंड राज्य का रामगढ़ जिला पिछले 2 वर्षों से अवैध कारोबार का गढ़ बन गया है। इस जिले में पिछले 2 वर्षों से सरकारी मशीनरी के सहयोग से लगभग सभी अवैध कारोबार चल रहे हैं। कोयला,बालू, पत्थर, कबाड़ी का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा था। अब रामगढ़ जिले में चारकोल का कारोबार भी जोर शोर से चलने लगा है।

रामगढ़ जिले के कई स्पोंज फैक्ट्रियों से बड़े पैमाने पर चारकोल की खरीद बिक्री हो रही है। झारखंड और मध्य प्रदेश के कोल सप्लायर यह चारकोल खरीदकर रेलवे साइडिंग में ला रहे हैं।जहां से पावर हाउस भेजे जाने वाले कोयले में बड़े पैमाने पर चारकोल मिलाया जा रहा है। बताया जाता है कि रामगढ़ जिला के झारखंड इस्पात,आलोक स्टील और मां छिन्मस्तिका स्पोंज प्लांट से कोयले में चारकोल मिलाने वाले कारोबारी चारकोल खरीद रहे हैं। चारकोल को हाईवा और 12 चक्का ट्रक के माध्यम से फैक्ट्री से निकाला जा रहा है। फैक्ट्री से निकलने के बाद चारकोल को मध्य प्रदेश के सिंगरौली भेजा जा रहा है।

जानकारों की मानें तो रोजाना रामगढ़ के विभिन्न ट्रकों से लगभग 70 से 80 तक चारकोल सिंगरौली भेजा जा रहा है। सिंगरौली के रेलवे साइडिंग में यह चारकोल गिराया जा रहा है। वहां से चारकोल को कोयले में मिलाकर विभिन्न पावर हाउस में भेजा जा रहा है। वही रामगढ़ जिला के भुरकुंडा और पतरातू रेलवे साइडिंग से भी कोयला में चारकोल मिलाकर विभिन्न पावर हाउस में कोयले की सप्लाई की जा रही है। बताया जाता है कि यह कारोबार स्थानीय सरकारी मशीनरी के सहयोग से धड़ल्ले से चल रहा है। जिसमें करोड़ों रुपए का खेल चल रहा है। बताया जाता है कि कोलियरी से कोयले की ट्रांसपोर्टिंग रेलवे साइडिंग के लिए की जाती है। लेकिन यह कोयला बाजारों में बिक रहा है और कोयले में चारकोल मिलाकर पावर हाउस में सप्लाई की जा रही है। रेलवे साइडिंग में आने वाले कोयला फैक्ट्रियों और बिहार और उत्तर प्रदेश के मंडियों में बेची जा रही है। अवैध कारोबारी कोयला का अवैध कारोबार कर करो रुपए कमा रहे हैं। वहीं चारकोल मिलाकर सप्लाई करने में भी करोड़ों की कमाई हो रही है। जानकारों की मानें तो इस अवैध कारोबार में चारकोल फैक्ट्री प्रबंधन की भी काफी कमाई हो रही है। हालांकि स्पोंज फैक्ट्री में जले कोयले को ही चारकोल कहा जाता है। चारकोल में भी जलने की कुछ पावर होती है। लेकिन यह कोयले का जला हुआ बुरादा होता है। काला रंग होने के कारण चारकोल कोयले में आसानी से मिल जाता है। स्पोंज फैक्ट्रियों में चारकोल 400 से ₹600 टन बेची जाती है। लेकिन जब यह चारकोल कोयले में मिल जाता है तो इसकी कीमत 5 से 6 हजार रुपए टन हो जाती है।

जानकारों की मानें तो इस कारोबार में रेलवे के अधिकारियों की भूमिका सबसे ज्यादा संदेहास्पद है। वही पावर हाउस के अधिकारियों की भी भूमिका काफी संदेहास्पद मानी जा रही है। पावर हाउस के अधिकारियों और रेलवे के अधिकारियों को भी मैनेज किया जा रहा है। स्थानीय सरकारी मशीनरी को भी मोटी राशि देकर मैनेज किया जा रहा है। पिछले 2 वर्षों से रामगढ़ जिला में यह कार्य धड़ल्ले से चल रहा है। हालांकि इस कारोबार को लेकर बीच में सीबीआई भी सक्रिय हुई थी। जिसके बाद कुछ समय के लिए यह कारोबार बंद कर दिया गया था। लेकिन पिछले 4 से 5 महीनों से यह कारोबार फिर धड़ल्ले से चल रहा है। रामगढ़ की उपायुक्त माधवी मिश्रा के आदेश के बाद जिला का प्रशासनिक टीम चारकोल की 6 गाड़ियों को मध्य प्रदेश ले जाने के क्रम में पकड़ लिया है। जिससे यह बात पुख्ता होने लगी है कि रामगढ़ जिले से चारकोल का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। हालांकि प्रशासन के इस कार्रवाई से चारकोल बाहर भेजे जाने की बात स्पष्ट हो रही है। लेकिन रेलवे साइडिंग में कोयले में चारकोल मिलाने की जांच फिर एक बार सीबीआई करती है तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा।

जानकारों की माने तो कोयले में चारकोल मिलाने के धंधे में रामगढ़ जिला के बबलू यादव और नेपाल यादव सहित कई लोग शामिल है। वहीं मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार अरविंद गुप्ता नामक व्यक्ति इस पूरे कारोबार का मुखिया है। वह संगीता सेल्स सहित कई बड़ी कंपनियों के लिए सप्लाई करने का काम करता है। वहींं इस कारोबार में जेपी कंपनी के लिए काम करने वाला आरके सिंह का नाम भी चर्चा में है।

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