
गांवों के लोग चिमनी के धुएं से प्रभावित होकर कई गंभीर रोगों के शिकार होने के कगार पर , नियम और कायदे की उड़ाई जा रही धज्जियां!
जिला ब्यूरो रिपोर्ट
घाटो। एक तरफ सरकार महानगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने के लिए करोड़ों – अरबों की राशि खर्च कर रही है। वहीं दूसरी ओर मांडू प्रखंड के ग्रामीण क्षेत्र में कुकुरमुत्ते की तरह सारे नियम कायदे को ताक रख कार्य किया जा रहा है। सैकड़ो ईंट भट्ठे के संचालक खुद का पेट भरने के लिये लोगों के जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहा है। आलम यह है कि ईंट भट्ठा वाले ऐसे गांव के लोग सांस से संबंधित बीमारी, दमा , टीबी समेत अन्य रोगों से ग्रसित होने के कगार पर हैं। इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से अवैध ईट भट्ठों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे पर्यावरण तो प्रदूषित हो रही रहा है। साथ ही राजस्व को होने वाले आय का भी नुकसान हो रहा है। मांडू प्रखंड के विभिन्न पंचायतों में संचालित ईंट भट्ठा के संचालक द्वारा नियम कायदे के विरुद्ध विभागीय मिली भगत से गांव, टोले व मुहल्ला में इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। इस धंधे में ईंट भट्ठे संचालकों की जहां चांदी कट रही है। वही ईंट भट्ठे के आस पास के गांवों के लोग चिमनी के धुएं से प्रभावित होकर कई गंभीर रोगों के शिकार हो रहे है। जानकारों की माने तो ईंट चिमनी के संचालित होने से आस पड़ोस के अधिकांश भूमि की नमी कभी हटती ही नहीं है। थोड़ी सी बारिश होने पर खेतों में पानी का जमाव हो जाता है। जहां किसानों द्वारा बोये जा रहे विभिन्न फसल प्रभावित हो रहे हैं। खास कर दलहन और तेलहन के फसलों के पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
—ईंंट भट्ठा लगाने का प्रावधान—
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ईंट भट्ठा का संचालन गांव, टोले व मुहल्ले के कम से कम दो किलो मीटर की दूरी होनी चाहिए। लेकिन नियम और कानून के विपरीत चिमनी संचालक द्वारा उक्त कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। हैरत की बात तो यह है कि प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश संचालक एक चिमनी भट्ठा का लाइसेंस लेता है। इसके साथ ही वे कई स्थानों पर इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं। इन बातों से विभाग अवगत भी है। बावजूद इसके ऐसे संचालकों पर विभाग द्वारा किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं किया जा रहा। जो लोगों के समझ से परे है।
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