जाति आधारित जनगणना हेतु सौपे गए ज्ञापन को लेकर भाजपा में मतभेद

राज्य ब्यूरो रिपोर्ट झारखंड / उमेश सिन्हा

रांची। झारखंड भाजपा में पिछले दो दिनों से प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश चर्चा का विषय बने हुए हैं। चर्चा का मुख्य कारण पिछले दिनों दिल्ली में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने गृहमंत्री अमित शाह को ज्ञापन सौंपा था जिसमें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का भी हस्ताक्षर था। वही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल भी थे। भाजपा में चर्चा है कि सौंपा गया ज्ञापन में केंद्र सरकार की नीतियों में त्रुटियां बताई गई है। केंद्र सरकार के निर्णय को भी दुर्भाग्यपूर्ण बताया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास के नारे पर उठाए गए सवाल वाले पत्र पर प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश का हस्ताक्षर चर्चा में आया है। पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद भाजपा नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के मन में कई प्रकार की चर्चा उठ रही है।क्या प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश इस मुद्दे पर अपनी पार्टी और केंद्र सरकार के खिलाफ हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के हस्ताक्षर के बाद यह मामला पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पहुंचाया गया है। पार्टी के आला नेता पूरे मामले पर जानकारी ले रहे हैं। यह सब बातें भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हो रही है। वही सोशल मीडिया पर भी यह बातें चल रही है।

गृह मंत्री को सौंपा गया ज्ञापन मैं लिखा गया :

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने समाज के अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति के उत्थान के साथ नये भारत का सपना देखा था। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर एवं संविधान के अन्य निर्माताओं ने बापू के इस सपने को पूरा करने के लिए संविधान में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष सुविधा एवं आरक्षण की व्यवस्था की है।
आजादी के बाद से आज तक की कराई गई जनगणना में जातिगत आंकड़े नहीं रहने से विशेषकर पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष सुविधाऐं पहुंचाने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2021 में प्रस्तावित जनगणना में युगों-युगों से उत्पीडित, उपहासित, उपेक्षित और वंचित पिछड़े एवं अति पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना नहीं कराने की सरकार द्वारा संसद में लिखित सूचना दी गयी है जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। पिछड़े अति पिछड़े वर्ग युगों से अपेक्षित प्रगति नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में यदि अव जातिगत जनगणना नहीं करायी जायेगी तो पिछड़ी / अति पिछड़ी जातियों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति का ना तो सही आकलन हो सकेगा, ना ही उनकी बेहतरी व उत्थान संबंधित समुचित नीति निर्धारण हो पाऐगा और ना ही उनकी संख्या के अनुपात में बजट का आवंटन हो पाऐगा। ज्ञातव्य हो कि आज से 90 वर्ष पूर्व जातिगत जनगणना वर्ष 1931 में की गई थी एवं उसी के आधार पर मंडल कमिशन के द्वारा पिछड़े वर्गों को आरक्षण उपलब्ध कराने की अनुशंसा की गई थी।
भारत में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों ने सदियों से आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन का दंश झेला है। आजादी के बाद विभिन्न वर्गों का विकास अलग-अलग गति से हुआ है। जिसके कारण अमीरों एवं गरीबों के बीच की खाई और बढ़ी है। भारत में आर्थिक विषमता का जाति से बहुत मजबूत संबंध है एवं सामान्यतया जो सामाजिक रूप से पिछड़े श्रेणी में आते हैं, वे आर्थिक तौर पर भी पिछड़े
सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारों को अमलीजामा पहनाने की जमीनी पहल करना समय की मांग है। विकास का खाका तैयार करने की पहली शर्त होती है, जमीनी हकीकत की जानकारी इसके लिए जातिगत जनगणना सबसे कारगर माध्यम साबित होगा। जातिगत जनगणना कराने से ही समाज के सभी वर्गों को हिस्सेदारी के अनुपात में भागीदारी देना सुनिश्चित किया जा सकता है। इस मांग को समय की जरूरत समझी गई है इसलिए दल की दीवारें तोड़कर सब एक साथ केन्द्र से ये मांग रहे हैं कि जनगणना में सभी जातियों के राजनीति, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर की जानकारियों को समावेश कर सार्वजनिक किया जाय। पिछड़ों और अति पिछड़ों को उनके जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी और भागीदारी नहीं मिल पा रही है। वजह है इनका सटीक जातीय आंकड़ा उपलब्ध ना होना।
ऐसी परिस्थिति में इन विषमताओं को दूर करने के लिए जातिगत आँकड़ों की नितांत आवश्यकता है। जाति आधारित जनगणना कराये जाने से देश के नीति-निर्धारण में कई तरह के फायदे हैं जिनमें से प्रमुख निम्नवत् है :

• पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण की सुविधा उपलब्ध कराने में ये आकड़ें सहायक सिद्ध होगें।

• नीति निर्माताओं को पिछड़े वर्ग के लोगों के उत्थान के निमित्त बेहतर नीति-निर्धारण एवं क्रियान्वयन में आकड़े मदद करेंगे।

• ये आँकड़े आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विषमताओं को भी उजागर करेंगे एवं तत्पश्चात् लोकतांत्रिक तरीके से इनका समाधान निकाला जा सकेगा।
संविधान की धारा 340 में भी आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की वस्तुस्थिति की जानकारी प्राप्त करने के निमित्त आयोग बनाने का प्रावधान है। जातिगत जनगणना से संविधान के इस प्रावधान का भी अनुपालन सुनिश्चित हो सकेगा।

• लक्ष्य आधारित योजनाओं में सुयोग्य लाभुकों को शामिल करने तथा नहीं करने में होने वाली त्रुटियों को कम करने में भी यह सहायक सिद्ध होगी। अतः हम सभी झारखण्ड के सर्वदलीय शिष्टमंडल के सदस्य माननीय प्रधानमंत्री जी एवं माननीय गृह मंत्री जी से जाति आधारित जनगणना कराने की माँग करते हैं।

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